Thursday, April 29, 2010

बेकार न जाने दें एक भी बूंद


पानी की एक-एक बूंद का कई मर्तबा इस्तेमाल। यही तो है रीसाइक्लिंग। आज जब दुनिया में तेजी से भूजल भंडार खत्म हो रहे हैं, बेशकीमती पानी को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए सब लोगों को इसे अपनाना पड़ेगा। सरकार का मुंह न देखें। वह अनिवार्य चाहे इसे आज बनाए या कल, हमें तो आज से ही इस पर अमल करना होगा। ..एक संकल्प लेना होगा।
वाटर रीसाइक्लिंग का अर्थ है पानी की हर बूंद को साफ कर बार-बार उसका इस्तेमाल करना। चूंकि पानी का कोई विकल्प नहीं है इसलिए जरूरी है कि जितना पानी मिल रहा है, हम उसका अधिकतम उपयोग करें और यह केवल रीसाइक्लिंग व ट्रीटमेंट से संभव है।

शहरी इलाकों में रोजाना सप्लाई किए जाने वाले करोड़ों लीटर पानी का 80 फीसदी हिस्सा इस्तेमाल के बाद सीवरेज में बहा दिया जाता है। अगर इस 80 फीसदी हिस्से को रीसाइकिल/ट्रीट कर लिया जाए तो यह पानी की बहुत बड़ी बचत होगी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की एक रिपोर्ट के अनुसार उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले पानी का ३५ फीसदी हिस्सा ही ट्रीट होता है। यदि शेष ६५ फीसदी पानी को भी ट्रीट कर लिया जाए तो न केवल जल संकट पर काफी हद तक काबू पाया जा सकेगा। बल्कि हमारी जेब का भार भी कम होगा।

नहाने, हाथ-मुंह, कपड़े धोने, साफ-सफाई और बर्तन वगैरह धोने में इस्तेमाल पानी ‘ग्रे वाटर’ कहलाता है और इसे रीसाइकिल किया जा सकता है जबकि टॉयलेट में इस्तेमाल पानी ‘ब्लैक वाटर’ कहलाता है जिसे ट्रीट करना पड़ता है। वाटर रीसाइक्लिंग घर, दफ्तर अथवा इंडस्ट्री, कहीं भी की जा सकती है और कोई भी इसे अपने स्तर पर कर सकता है। रीसाइकिल पानी का इस्तेमाल मुख्यत: सिंचाई के लिए किया जाता है। कुछ वजह से इसे पीने लायक नहीं माना जाता।

ऐसे होती है रीसाइक्लिंग
प्राइमरी : बालू से फिल्टर करने की प्रक्रिया में ग्रे वाटर को रेत, रोड़ी व कंकड़ से गुजार कर निथारा जाता है। इसमें पानी से केवल ठोस पदार्थ व मिट्टी के कण अलग हो पाते हैं। क्लोरीनेशन प्लांट भी इसी श्रेणी में आता है जो नगर निगम व नगर पालिकाएं लगाती हैं।


सेकेंडरी : इसमें इलेक्ट्रो मैग्नेटिक किरणों का इस्तेमाल होता है। बहुत ज्यादा प्रदूषित पानी के लिए सुपर क्लोरीनेशन और रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) प्लांट लगते हैं। आरओ में ग्रे वाटर में ऑक्सीजन पंप करके ‘मित्र जीवाणुओं’ को सक्रिय किया जाता है। ५क्क् तक की आबादी वाले गांव में आरओ प्लांट लगाने पर १५ लाख रुपए खर्च होते हैं। कैंसर के केस बढ़ने पर पंजाब के दो हजार गांवों में ये प्लांट लगाए गए हैं। इन्हें शेष गांवों में भी लगाया जाएगा।


टर्शरी : सीवरेज पानी को ट्रीट कर इंडस्ट्रियल ग्रेड व सिंचाई योग्य बनाने का यह सबसे बढ़िया तरीका है। टर्शरी व क्लोरीनेशन प्लांट को जोड़कर शुद्ध किया जाने वाला पानी पीने लायक बन जाता है।

बेंगलुरु में रेन वाटर क्लब के संस्थापक और जल विशेषज्ञ एस. विश्वनाथ के अनुसार ट्रीटमेंट या रीसाइक्लिंग प्लांट में पानी की लागत ताजे जल की तुलना में आधी आती है। बेंगलुरु में कावेरी नदी से पानी लाने पर प्रति हजार लीटर १८ रुपए खर्च होते हैं, जबकि इतने ही रीसाइकिल पानी (हार्ड वाटर) की लागत पांच से आठ रुपए आती है।

अमेरिका के लॉस एंजिलिस, सेन फ्रांसिस्को और दक्षिण कैलिफोर्निया में गोल्फ कोर्स व दूसरे पार्को में सिंचाई के लिए रीसाइकिल पानी का इस्तेमाल 1929 से किया जा रहा है। 1972 से तो अमेरिका ने वाटर रीसाइक्लिंग को अनिवार्य बना दिया। सिंगापुर में रीसाइक्लिंग व आरओ प्लांट की मदद से पानी को साफ कर बेचा जाता है जबकि विंधोएक (नामीबिया) में इसे वापस जलस्रोतों में डाल देते हैं।

इस मामले में हम पीछे जरूर हैं लेकिन काम हमारे यहां भी हो रहा है। ‘सिटी ब्यूटीफुल’ के नाम से मशहूर भारत की पहली प्लांड सिटी, चंडीगढ़ में 50 साल से सीवरेज पानी को टर्शरी पद्धति से ट्रीट कर गोल्फ कोर्स व पार्को में प्रयोग किया जा रहा है।

अगले साल से बड़ी कोठियों में बने पार्को की सिंचाई के लिए भी ‘हार्ड वाटर’ देने की योजना है। नगर निगमों और नगर पालिकाओं में ट्रीटमेंट प्लांट लगाना अनिवार्य है लेकिन सख्ती नहीं होने के कारण अमल नहीं हो पाता। सरकार सख्ती करके इसे लागू करवा सकती है।

गुजरात में पहल

गुजरात के सूरत में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत देश का पहला वाटर रीसाइक्लिंग प्लांट लगने जा रहा है। इसमें घरों से निकलने वाला ‘ग्रे वाटर’ टर्शरी पद्धति से रीसाइकिल कर पांडेसरा इंडस्ट्रियल एरिया में स्थापित उद्योगों को दिया जाएगा। अब तक इस पानी को ट्रीट कर खाड़ी में फेंका जाता था।

टर्शरी पद्धति से उद्योगों को रोजाना 40 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) पानी दिया जाएगा। इसकी दरें एक हजार लीटर के लिए 18.20 रुपए रहेगी। इसे कम करने के लिए बातचीत चल रही है। फिलहाल इन उद्योगों को नगर निगम 16 रुपए प्रति एक हजार लीटर के हिसाब से पानी दे रहा है।

जल विशेषज्ञ विश्वनाथ को उम्मीद है कि वह दिन दूर नहीं है जब भारत में घरेलू स्तर पर वाटर रीसाइक्लिंग प्लांट लगने लगेंगे। उसके बाद पानी की कमी और सीवरेज की बदबू बीते जमाने की बात हो जाएगी।

बहरहाल पानी का इस्तेमाल रोका तो नहीं जा सकता, लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि उसकी हर बूंद का बार-बार उपयोग हो सके। एक फीट की रफ्तार से गिरते भूजल स्तर के मद्देनजर हम सबको रीसाइक्लिंग व ट्रीटमेंट को बढ़ावा देना ही होगा। अब सोचने का नहीं, काम करने का वक्त है।


इस तरह अमल करें घर में
लोग अपने स्तर पर घर में 4x5 का गड्ढा बनाकर रसोई व बाथरूम के पानी को उसमें डाल सकते हैं। गड्ढे में मिट्टी, चारकोल, रोड़ी व कंकड़ डालकर पानी को रीसाइकिल कर उससे बगीचे को सींचा जा सकता है। इसके लिए रसोई, नहाने व कपड़े धोने में इस्तेमाल पानी को टॉयलेट के पानी से अलग करने के लिए दो पाइप लाइन बिछानी होंगी।

रसोई व बाथरूम की लाइन को रीसाइकिल प्लांट और शोधित पानी को टॉयलेट तक ले जाने के लिए अलग लाइन चाहिए। इसमें प्लांट की जगह और पाइप की कीमत के अलावा दूसरा खर्च बहुत मामूली है। इसके अलावा रसोई में इस्तेमाल पानी को भी दो हिस्सों में बांटा जा सकता है।
एक, वह पानी जो कार्बन/बैक्टीरिया वाला नहीं होता जैसे सब्जियां धोने के बाद बचा पानी। इसे सीधे पौधों में डाला जा सकता है। दूसरा, बर्तन धोने के बाद बचा पानी। चूंकि इसमें तेल और मसाले मिले होते हैं, इसलिए उसे रीसाइकिल कर बगीचे या टॉयलेट में फ्लश के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

सब्जियों को भी सीधे नल के नीचे धोने की जगह किसी बर्तन में धोना चाहिए। बाद में वह पानी पौधों में डाला जा सकता है। आजकल ऐसे टॉयलेट भी आने लगे हैं जिनमें फ्लश टैंक के ऊपर ही वॉश बेसिन होता है। इससे अपने आप पानी का दूसरी बार इस्तेमाल हो जाता है।

शहर में ऐसे लागू होगी

14 जून 1986 में लांच पहले गंगा एक्शन प्लान के सदस्य रह चुके और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर राशिद हयात सिद्दीकी कहते हैं कि किसी भी कॉलोनी या शहर में रीसाइक्लिंग प्लांट लगाया जा सकता है। इसमें पानी को शुद्ध करने की लागत बहुत कम आएगी।

मिसाल के तौर पर आरओ प्लांट की लागत 15 लाख रुपए आती है। अगर इसे सौ घरों वाली सोसायटी में लगाया जाए तो प्रत्येक परिवार पर केवल 15 हजार रुपए का बोझ पड़ेगा। शहर स्तर पर लगने वाले 240 एमएलडी क्षमता वाले क्लोरीनेशन प्लांट की लागत 300 करोड़ रुपए तक बैठती है। इसमें प्रति हजार लीटर पानी का खर्च 4.80 रुपए आता है जिसे शहर के स्तर पर वहन करना कठिन नहीं है।

शहर में पानी को रीसाइकिल करने का सबसे अच्छा उदाहरण फिनलैंड के शहर हेलसिंकी का है। वहां एक सिस्टम के तहत शहर के प्रत्येक घर व औद्योगिक इकाई का गंदा पानी सात एकड़ में बने रीसाइकिल प्लांट में पहुंचता है। वहां पानी को ट्रीट करके उसके एक हिस्से को फिर से इस्तेमाल करने लायक बनाया जाता है, जबकि दूसरे हिस्से को झील या तालाबों में छोड़ दिया जाता है।

३५ हिस्सा ही रीसाइकिल होता है उद्योगों में इस्तेमाल पानी का।

६५ त्न गंदा पानी बगैर ट्रीटमेंट के नदी-नालों में बहा दिया जाता है।

१३ पैसे ऑपरेटिंग खर्च प्रति लीटर समुद्री पानी को मीठा बनाने में।
४ पैसे ऑपरेटिंग खर्च आता है प्रति लीटर भूगर्भीय खारे पानी को मीठा करने में।
५ लाख खर्च भूगर्भीय खारे पानी को मीठा बनाने (1000 ली.प्लांट) में।

फैक्ट फाइल
इजरायल में पानी बर्बाद करने पर सजा का प्रावधान है। फ्लोरिडा में रीसाइक्लिंग नहीं करने पर जुर्माना लगता है।
चीन ने अपने शहरों/कस्बों में एक हजार से अधिक वाटर रीसाइक्लिंग प्लांट लगाए हैं।

समूचे ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और यूरोप के कई देशों में टॉयलेट में केवल रीसाइकिल पानी इस्तेमाल किया जाता है।
चंडीगढ़ में गोल्फ कोर्स व पार्को को सीवरेज का पानी ट्रीट करके दिया जाता है।
दिल्ली के हैदरपुर व गोकुलपुरी में दो रीसाइक्लिंग प्लांट चल रहे हैं।
बेंगलुरु डेवलपमेंट अथॉरिटी अपने मशहूर कब्बन पार्क में ‘हार्ड वाटर’ देती है।

समुद्री पानी पर नजर

धरती पर मौजूद पानी का 97 फीसदी हिस्सा समुद्री पानी के रूप में है जो खारा है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इजरायल, चीन और सऊदी अरब अपनी कुल मांग का बड़ा हिस्सा इसी पानी को मीठा (डीसेलिनेशन) करके पूरा करते हैं। सऊदी अरब की राजधानी रियाद में इसके लिए ३२क् किमी लंबी पाइप लाइन बिछाई गई है।

दुनियाभर में इसके 15 हजार और भारत के अंडमान, गुजरात, तमिलनाडु, लक्षद्वीप और आंध्रप्रदेश में छोटे-बड़े १७५ प्लांट चल रहे हैं। इनमें पहला प्लांट अंडमान में १९४६ में लगा था।
फ्लोरिडा में रोजाना 9 करोड़ 45 लाख लीटर समुद्री पानी शुद्ध होता है।
संयुक्त अरब अमीरात में ३८ करोड़ ५क् लाख लीटर खारे पानी को मीठा बनाया जाता है।
अरुबा द्वीप में 4 करोड़ 94 लाख लीटर क्षमता वाला डीसेलिनेशन प्लांट लग रहा है।

सिर्फ इच्छाशक्ति चाहिए

गुजरात के महेसाणा जिले के फतेपुरा गांव में दो साल पहले घरों से निकलने वाले गंदे पानी को पाइप लाइन बिछाकर पोखर में डालने की योजना बनी। सरपंच मेनाबेन चौधरी के अनुसार पाइप बिछाने के लिए एनआरआई पटेल डाह्या भाई ने आर्थिक मदद दी। आज पोखर के पानी से 10 से 15 एकड़ में सिंचाई होती है।

पंचायत ने टेंडर के जरिये तीन साल के लिए इसका ठेका एक लाख रुपए में दिया है। यह रकम गांव के विकास पर खर्च होती है। फतेपुरा केंद्रीय ग्रामीण विकास विभाग से निर्मल ग्राम का पुरस्कार पाने वाला गुजरात का पहला गांव है।

Friday, April 9, 2010

भगवान खिलाए कौन-कौन खाए

एक प्रसिद्ध आदमी था। वह ईमानदारी और मेहनत के साथ समाजसेवा के कार्यो के लिए भी जाना जाता था। एक दिन बाजार में एक भिखारी ने उसके आगे हाथ पसारा। समाजसेवी को न जाने क्या सूझा कि उसने भिखारी से कहा, ‘चलो मेरे साथ, मैं तुम्हें भीख से कुछ ज्यादा देना चाहता हूं।’ भिखारी को लेकर वह अपने एक परिचित दुकानदार के पास पहुंचा। समाजसेवी ने कहा कि वह उसे कोई काम दे दे।


चूंकि लोग उस पर भरोसा करते थे, इसलिए दुकानदार ने भी उसके बताए आदमी, यानी भिखारी को कुछ सामान देकर आसपास के गांवों में बेचने का काम दे दिया। कुछ दिनों बाद जब वह समाजसेवी फिर से बाजार से गुजर रहा था, तो उसने भिखारी को हाथ फैलाए हुए पाया। जब उसने काम के बारे में पूछा, तो भिखारी ने बताया, ‘मैं सामान लेकर गांव-गांव घूमता था। एक बार मैंने देखा कि एक अंधा बाज पेड़ के नीचे बैठा हुआ था।



मुझे उत्सुकता हुई कि आख़िर वह अपने लिए खाने का इंतजाम कैसे करता होगा! तभी मैंने देखा कि एक और बाज चोंच में खाना भरकर लाया और उसे खिलाने लगा। तभी मेरे दिमाग़ में आया कि भगवान सबकी परवाह करता है। अगर उसने अंधे बाज के लिए भोजन का प्रबंध किया, तो वह मेरे लिए भी जरूर करेगा। इसलिए मैंने काम छोड़ दिया।’ उसका क़िस्सा सुनकर समाजसेवी ने इतना ही कहा, ‘यह सही है कि ऊपरवाला कमजोरों का भी ध्यान रखता है। लेकिन वह तुम्हें सबल बनने का विकल्प भी देता है। फिर तुमने अंधा बाज बनने की बजाय खाना खिलाने वाला पक्षी बनने का विकल्प क्यों नहीं चुना?’


सबक : भगवान की आड़ में अपनी अकर्मण्यता और आलस को सही ठहराएं। जब स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म का महत्व बता दिया, तो बस भगवान भरोसे ही बैठे रहना मूर्खता ही है।